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6 घंटे पहले
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- महाभारत और पद्म पुराण का कहना है माघ महीने के शुक्लपक्ष में किए गए तीर्थ-स्नान और दान से मिलता है कई यज्ञों का पुण्य
माघ महीने का शुक्लपक्ष 12 तारीख से शुरू हो गया है। जो कि 27 फरवरी तक रहेगा। इन 15 दिनों में दर्जनभर से ज्यादा व्रत-पर्व रहेंगे। इनमें किए गए स्नान-दान और पूजा-पाठ से जाने-अनजाने हुए पाप खत्म हो जाते हैं और कई गुना पुण्य भी मिलता है। माघ महीने के शुक्लपक्ष के दौरान सूर्य कुंभ राशि में रहता है। इसलिए इस समय मौसम में बदलाव के साथ पतझड़ की शुरुआत हो जाती है। इन पर्वों में व्रत की परंपरा मौसम को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। जिससे सेहत अच्छी रहती है और बीमारियों से लड़ने की ताकत भी मिलती है।
पद्म पुराण के मुताबिक माघ महीने के शुक्लपक्ष की तृतीया को मंवंतर तिथि कहा गया है। इस दिन किए गए दान से अक्षय फल मिलता है। माघ महीने के शुक्लपक्ष के में आने वाले मंगल और गुरुवार का व्रत करने से भी विशेष फल मिलता है। इनमें मंगलवार 16 और 23 फरवरी को आ रहा है। वहीं गुरुवार 18 और 25 फरवरी को रहेगा।
महाभारत के अनुशासन पर्व में बताया गया है कि माघ महीने के दौरान तांबे के बर्तन में तिल भरकर उनका दान करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। माघ महीने के शुक्लपक्ष के तीज-त्योहारों पर इस तरह का दान विशेष फल देने वाला माना गया है।
विनायक चतुर्थी (15 फरवरी) : माघ महीने के शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश की तिल से पूजा की जाती है। तिल के लड्डूओं का भोग लगाया जाता है। साथ ही चंद्रमा की पूजा के बाद व्रत खोला जाता है। इस व्रत को करने से वैवाहिक जीवन में सुख और समृद्धि बढ़ती है।
वसंत पंचमी (16 फरवरी) : इसे श्री पंचमी करते हैं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के मुताबिक इस दिन देवी सरस्वमी का प्राकट्य हुआ था। इसलिए इस पर्व पर विद्यारंभ संस्कार की भी परंपरा है। कई जगहों पर इस तिथि को अबूझ मुहूर्त माना जाता है और इस दिन हर तरह के शुभ और खास कामों की शुरुआत की जाती है।
रथ सप्तमी (19 फरवरी) : श्रीकृष्ण ने युधिष्ठर को इस व्रत का महत्व बताया था। इस व्रत से कम्बोज के राजा यशोधर्मा को बूढ़ा हो जाने पर भी संतान हुई। वो नीरोगी और चक्रवर्ती राजा हुआ। मत्स्य पुराण के मुताबिक, इस तिथि पर भगवान सूर्य को रथ मिला था। इसलिए इसे रथ सप्तमी कहते हैं। भविष्य पुराण में भी इस व्रत का महत्व बताया गया है।
भीष्माष्टमी (20 फरवरी) : भीष्म अष्टमी व्रत माघ महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। महाभारत में बताया गया है कि भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान था। इस तिथि पर भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण छोड़े थे। इसलिए ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन भीष्म पितामह के लिए कुश, तिल, जल लेकर तर्पण करना चाहिए। इससे उसके पितर संतुष्ट होते हैं।
जया एकादशी (23 फरवरी) : माघ महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहा जाता है। इस तिथि पर भगवान विष्णु के लिए व्रत किया जाता है। माघ महीने के दौरान इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म होते हैं। इस दिन तिल का दान करने से कई यज्ञों के फल जितना पुण्य मिलता है। विद्वानों का कहना है कि इस दिन व्रत और पूजा से मोक्ष मिलता है।
भीष्म द्वादशी (24 फरवरी) : भीष्म द्वादशी पर्व माघ महीने के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को किया जाता है। ये व्रत भीष्म पितामह के निमित्त किया जाता है। इस दिन महाभारत के भीष्म पर्व का पाठ किया जाता है। साथ ही भगवान कृष्ण की पूजा की जाती है। माघ महीने के शुक्लपक्ष की अष्टमी पर भीष्म पितामह ने शरीर छोड़ा था। लेकिन उनके लिए तर्पण, श्राद्ध और अन्य धार्मिक कर्मकाण्ड द्वादशी तिथि पर भी किए जाते हैं।
माघ पूर्णिमा (27 फरवरी) : माघ महीने के आखिरी दिन जब चंद्रमा मघा नक्षत्र में सूर्य के सामने सिंह राशि में होता है तब ये पर्व मनाया जाता है। इस तिथि पर तीर्थ-स्नान और दान करने का महत्व ग्रंथों में बताया गया है। ये दिन भगवान की पूजा के साथ ही ऋषियों और पितरों को खुश करने के लिए भी खास माना जाता है। इस दिन किए गए तीर्थ-स्नान और तिल के दान से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।